mera desh
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रिमझिम के गीत गा रहा है सावन,
भिगो कर मुस्करा रहा है सावन।
हर तरफ पानी-पानी हो गया है,
घटा बनकर ऐसे छा रहा है सावन।
पेड़ों की डालियों पर पड़ गए हैं झूले,
गीत सावन के गुनगुना रहा है सावन।
तन-मन उल्लास से भर उठा है सबका,
हर एक को आज भा रहा है सावन।
रूप धरती का निखरता जा रहा है,
जलरंगों से बुलबुले बना रहा है सावन।
प्यासी धरती की व्याकुलता कम हुई है,
तपन धरा की मिटा रहा है सावन।
प्रकृति भावविभोर हो खिलखिला रही है,
धरती को स्वर्ग सा सजा रहा है सावन।
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