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खबर है–
शाहरुख खान ने दो सौ करोड़ का‚
घर बनवाया।
पैसा है तो ऐसे शौक‚
पूरे किए जा सकते हैं‚
पर ध्यान रहे–
घर चाहे कितना आलीशान‚
बनवा लिया जाए‚
बिस्तर चाहे कितना‚
गद्देदार‚आरामदेह हो‚
तिजोरी और बैंक खाता में‚
चाहे कितना धन हो‚
ना चाहते हुए भी‚
एक दिन छोड़कर‚
जाना ही पड़ता है।
फिर दो सौ करोड़ का‚
घर बनवाना बेहतर है‚
या‚
गरीब बेघरों को घर देना‚
गद्दे पर सोना बेहतर है ‚
या‚
दूसरों को बिस्तर देना‚
धन को ताले में बंद रखना‚
बेहतर है या‚
जरूरतमंदों की मदद करना‚
कहते हैं कि‚
जानवर सिर्फ अपने बारे में‚
सोचते हैं‚
लेकिन इनसान‚
सबके बारे में सोचता है।
गोस्वामी तुलसी दास ने कहा है–
परहित सरिस धरम नहीं भाई
अर्थात्–
दूसरों के साथ भलाई से बड़ा‚
कोई धर्म नहीं।
वैसे मेरा मानना है कि‚
मनुष्य के जीवन की सार्थकता‚
दूसरों के काम आने में है।
जो दूसरों के काम नहीं आता‚
वह उस सूखे पेड़ की तरह है‚
जिससे न फल मिलता है‚
और न छाया‚
और जिसके होने या न होने का‚
कोई अर्थ नहीं होता।
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