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लोकसभा चुनाव 2014 के सबसे बड़ा आकर्षण नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता वास्तविक है या बनावटी यह विचारणीय प्रश्न है,लेकिन भारत की धर्मभीरु जनता को इस तथ्य पर विचार करने की फुर्सत नहीं या यूँ कहिये कि वह इतनी सक्षम नहीं कि इस तथ्य पर विचार कर सके.हमारे देश में अंधभक्ति का एक चलन है, आज मोदी – मोदी का शोर,उसी चलन की एक बानगी भर है.आइये देखें मोदी के हीरो होने के शोर में कितना दम है और क्या उनमें कुछ खास है,या वो सिर्फ एक आम व सामान्य से व्यक्ति हैं. हमारे जेहन में बचपन से हीरो की एक छवि है। वह साहसी तो होता ही है साथ ही साथ उच्च नैतिकता‚आदर्श का पालन करता है। वह हर तरह से सक्षम और दुर्गुणों से मुक्त होता है। क्या मोदी उन सारी अपेक्षाओं को पूरा करते हैं‚जिसकी अपेक्षा समाज एक हीरो से करता है।
इस संदर्भ में गुजरात में हुए दंगों की सर्वप्रथम चर्चा करना उचित होगा। शायद ही कोई परिचित न हो कि स्व०लालबहादुर शास्त्री जब रेलमंत्री हुआ करते थे।तब हुई एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने तत्काल अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर मोदी के गुजरात में हजारों निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया गया‚महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं के साथ तक बलात्कार किया गया। गर्भवती महिलाओं के पेट चीर दिए गए और पेट से बच्चों को निकाल कर उनके शरीर को क्षत–विक्षत कर दिया गया । पद से त्यागपत्र देना तो दूर मोदी ने इस दंगे की नैतिक जिम्मेदारी तक नहीं ली। मतलब मोदी नैतिकता से कोरे हैं। एक चौकीदार यदि अपनी ड्यूटी ठीक से अंजाम नहीं देता तो उससे न सिर्फ सवाल–जवाब किया जाता है बल्कि ड्यूटी निभाने में अयोग्य और लापरवाह मान कर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है। लेकिन गुजरात में इतना बड़ा दंगा होने और उसपर काबू पाने में अक्षम होने के बावजूद न मोदी की नैतिकता दिखी न उनमें शर्म ही उपजी और उनको क्लीन चिट देने वालों की लाइन लगी है । राज्य और वहाँ निवास करने वालों कि रक्षा के ज़िम्मेदार मुख्यमंत्री जब अपनी ड्यूटी निभाने में असफल हो गया तो उसे क्लीन चिट कैसे दिया जा सकता है । गौर तलब है कि जो शख्स गुजरात जो विशाल भारत का एक छोटा सा हिस्सा भर है‚वहां जनता को सुरक्षा देने में विफल रहा‚वह पूरे देश में शान्ति और न्याय का राज कैसे स्थापित कर सकेगा। ऐसे में भी यदि कोई मोदी को हीरो मान रहा है तो मोदी हीरो हैं ।
के。पी。एस。गिल ने पिछले दिनों गुजरात मामले में मोदी को क्लीन चिट देते हुए कहा कि गुजरात में जो हुआ उसके लिए मोदी दोषी नहीं हैं‚गिल का उनको क्लीन चिट देना भी मोदी की अक्षमता को दर्शाता है। अगर यह मान भी लिया जाए कि गुजरात दंगों में मोदी का हाथ नहीं था तो भी प्रश्न यही उठता है कि मोदी दंगें को रोकने में असफल क्यों रहे? उनकी यह असफलता बतौर मुख्यमंत्री उनकी अक्षमता स्पष्ट करती है‚जो व्यक्ति एक प्रदेश में अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर सका‚ वह देश का प्रधानमंत्री बनने के योग्य कैसे हो गया‚यह विचारणीय है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने गुजरात के हालात से दुःखी होकर तब कहा था कि राजधर्म का पालन नहीं हुआ। यदि मोदी बतौर मुख्यमंत्री राजधर्म का पालन नहीं कर सके तो विशाल भारत का प्रधानमंत्री बनकर मोदी राजधर्म का पालन करेंगे‚इसपर विश्वास नहीं किया जा सकता। हालाँकि इस अविश्वास के बाद भी मोदी कुछ लोगों के हीरो हैं ।
मोदी को सत्ता‚ प्रधानमंत्री के पद की लालसा कितनी है‚इसे समझना मुश्किल नहीं है। मोदी लगातार ऐसा काम कर रहे हैं‚जिससे एक मामूली और शातिर राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी पहचान बनती जा रही है‚लोग उनको हीरो मान रहे हैं और वह छोटेपन का परिचय दे रहे हैं। हाल में रामविलास पासवान से गठबंधन और स्वयं को बार–बार पिछड़ा बताने के पीछे जातिवादी राजनीति की ओछी सोच काम कर रही है। साफ है मोदी वोट और सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। जातिवाद की राजनीति लगातार देश को कमजोर कर रही है‚लोगों को बांट रही है। समाज को दूषित कर रही है‚उसी राजनीति को सत्ता तक पहुंचने का माध्यम समझने वाले मोदी आखिरकार कैसे भीड़ से अलग हैं और क्यों हम उनको खास मानें ? इसके बावजूद मोदी कुछ लोगों के हीरो हैं।
मोदी ने कोलकाता में रैली किया और मंच से प्रणव मुखर्जी के प्रधानमंत्री न बनाने के लिए कांग्रेस को खरी–खोटी सुनाया। मकसद कोलकाता की जनता को यह एहसास कराना था कि प्रणव मुखर्जी जैसे योग्य और बुजुर्ग नेता को कांग्रेस ने प्रधानमंत्री न बनाकर न सिर्फ उनका अपमान किया बल्कि प०बंगाल का भी अपमान किया। लेकिन यह बात कहते हुए वह यह भूल गए कि कबसे प्रधानमंत्री की लाइन में लगे हुए लाल कृष्ण आडवानी को उन्होंने धकिया कर किनारे किया है। क्या बुजुर्ग आडवानी का यह अपमान नहीं था।मोदी को मालूम होना चाहिए कि हमें दूसरों को वही उपदेश देना चाहिए‚जिसपर हम स्वयं चलते हों ‚जिसका हम स्वयं पालन करते हैं।मगर मोदी की इसमें गलती नहीं‚वह हीरो हैं‚मतलब वह चाहे जो करें‚सही है।
मोदी आपके हीरो हैं तो उनकी एक विशेषता यह भी जान लें कि उनको इतिहास का ज्ञान न के बराबर है। वह बार–बार इतिहास सम्बंधी भूलें कर रहे हैं। कभी तक्षशिला को बिहार में ले आते हैं तो कभी भगतसिंह को अंडमान पहुंचा देते हैं। ध्यान रहे यह जरूरी नहीं कि वह भूल रहे हों। यह भी हो सकता है कि देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद वह वही इतिहास स्कूलों में पढ़वाने की तैयारी कर रहे हों जिसका नमूना बार–बार वह अपने भाषणों में दिखाते हैं। अब अगर वह भारतीय इतिहास से अनभिज्ञ हैं तो एक हीरो नेता की इस खामी के बारे क्या कहा जाए और अगर वह नया इतिहास लिखवा रहे हैं तो यह बहुत खतरनाक और गंभीर बात है। इतिहासकार डीएन झा मोदी के इस भूल पर कहते हैं कि मोदी ने कहा कि बिहार के लोगों ने सिकंदर को मार भगाया जबकि सिकंदर कभी बिहार गया ही नहीं।अगर इतिहास को गांधी मैदान में बैठकर गढ़ा जाए तभी ऐसी बातें निकल सकती हैं। नशे में इतिहास लिखा जाए तभी ऐसी बातें लिखी जा सकती हैं। फिर भी मोदी हीरो हैं इसमें शक नहीं।
मोदी हीरो हैं‚इसका एक नमूना और पेश किया मोदी ने या भाजपा ने उनको वाराणसी से अपना प्रत्याशी घोषित करके। हमारे फिल्मों का हीरो तो जोखिम लेने में ही खुद को हीरो समझता है‚लेकिन यह मोदी का मामला है। वह कुछ अलग किस्म के हीरो हैं। वह सुरक्षित क्षेत्र में ही अपने दुश्मन को दो–दो हाथ करने की चुनौती देने में विश्वास करते हैं। अब इसे पोल खुल जाने का भय कहें या हीरो की समझदारी। जिस मोदी की तरफ सब आशा भरी नजर से देख रहे हैं वह मैदान में आने के लिए पहले अपनी जीत सुनिश्चित करने में लगे हैं। असुरक्षा कि भावना इतनी प्रबल है कि मोदी एक नहीं दो जगह से चुनाव लड़ने जा रहे हैं । सोचने की बात है कि जब मोदी खुद अपनी सीट बचाने के प्रति आश्वस्त नहीं हैं तो वह दूसरे प्रत्याशियों की सीट कैसे बचाएंगे या कैसे उनको विजयी बनाएंगे। सबको वाराणसी की तरह सुरक्षित सीट तो मिल नहीं सकती और न सभी दो – दो जगह से चुनाव लड़ सकते हैं। आखिर कोई मोदी को हीरो कैसे मान सकता है या मोदी से कोई आशा कैसे लगा सकता है जो स्वयं सुरक्षा कवच में चुनाव लड़ रहा हो वह दूसरों को जीत कैसे दिला सकता है। ऐसा लगता है कि मोदी को अपने भ्रमजाल का अच्छी तरह भान है। इसलिए वह अपना सम्मान बचाने के लिए ऐसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं‚जहां जीत सुनिश्चित है। मोदी में स्वयं पर विश्वास नहीं है‚यदि होता तो वह उस सीट से चुनाव लड़ते जहां से पार्टी सीट जीतने के लिए तरसती रही हो और दिखा देते कि उनका दम–खम मीडिया की देन नहीं‚उनमें वाकई कुछ बात है। लेकिन वह इतना साहस नहीं जुटा सकें‚इस सबके बाद भी अगर आप मोदी को हीरो मानें तो मोदी हीरो हैं।
अरविन्द केजरीवाल गुजरात यात्रा पर गए तो मोदी से मिलने की इच्छा लिए पहुंच गए उनसे मिलने । लेकिन मोदी को अरविन्द केजरीवाल से पता नहीं क्या भय था कि वह उनसे मिलने को तैयार नहीं हुए । यदि मोदी एक भूतपूर्व सीएम और भावी पीएम प्रत्याशी से शिष्टाचारवश ही मिलने का समय नहीं निकाल सके तो फिर यह कैसे विश्वास किया जाए कि पी एम बनने के बाद मोदी आम आदमी से मिलने के लिए समय निकाल पाएंगे। इस घटना से यह भी पता चलता है कि मोदी को खुद की योग्यता पर भी भरोसा नहीं है‚इसलिए एक पढ़े–लिखे आदमी से मिलकर फंसने के लिए वह तैयार नहीं थे। इससे यह भी पता चलता है कि मोदी जो कुछ मंच पर बोलते हैं वह उनका अपना विचार नहीं होता‚बल्कि टीम द्वारा तैयार किया गया भाषण होता है। विचारशीलता की कमी ही हमें विद्वानों से मिलने से रोकती है। क्योंकि पढ़े–लिखे व्यक्ति के सामने बोलने से ढोल की पोल खुल जाती है। पर इससे क्या मोदी तो फिर भी हीरो हैं । हीरो की एक विशेषता होती है उसका विनम्र होना। मोदी में इसका लक्षण नहीं दिखता। उनके भाषण की शैली से दंभ और घमंड के भाव की अनुभूति होती है। उनके हाव–भाव से प्रतीत होता है कि उन्होंने स्वयं को प्रधानमंत्री मान लिया है। उनके आचरण से यही समझ में आता है कि वह उस खजूर के पेड़ की तरह हैं जो सीधा और तना हुआ खड़ा रहता है‚और जिससे न किसी को छाया मिलती है और न किसी को फल। फलदार पेड़ की पहचान उसकी विनम्रता से होती है। फलदार पेड़ की विनम्रता यह है कि वह झुका होता है और उस तक पहुंचना किसी के लिए भी आसान होता है। मोदी के बारे में यह नहीं कहा जा सकता। इसके बाद भी मोदी हीरो हैं।
गुजरात में दंगों के दौरान जो हुआ ‚चलिए उसे काफी समय हो गया। लेकिन अल्पसंख्यकों के प्रति आज भी भेदभाव की उनकी नीति की खबरें आती रहती हैं। उनपर न्याय और पुर्नवास कार्यों में दंगा पीड़ितों से भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाने का आरोप भी है । उनकी सरकार द्वारा अल्पसंख्यक छात्रों की छात्रवृति पर रोक लगाया गया। तमाम फर्जी एनकाउंटर उनके शासन काल में राज्य में हुआ। राज्य का मुखिया होने के कारण उत्तरदायी उनके सिवा कौन है? लेकिन मोदी हीरो हैं तो हैं।
आम आदमी पार्टी के आशुतोष के अनुसार, ‘विकास के बारे में मोदी का दावा पाखंड है। वह विकास का बीन बजा रहे हैं, लेकिन मैंने शहर के उन इलाकों का दौरा किया है, जहां कोई विकास नहीं हुआ है। कूड़े के ढेर लगे हुए हैं और लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।’ गुजरात पर एक लाख पैंतालीस हजार करोड़ का कर्ज है। वहां सड़क नहीं है, पानी नहीं है, बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल नहीं है। फिर किस विकास मॉडल की बात हो रही है? एक रिपोर्ट कहती है कि गुजरात में केंद्र से किसानों के मद में ली जाती बिजली उद्योगों को मुहैया की जाती है। गुजरात में मोदी का सुशासन बस इतना है कि उद्योगपतियों , पूंजीपतियों के हितों को साधा जा रहा है । बदले में मोदी के कद और कार्य को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। इस सब के बाद भी आप मोदी को हीरो मानें तो मोदी वाकई हीरो हैं।
अभी बहुत सारी बातें बाकी रह गयी हैं। लेकिन मोदी हीरो हैं या नहीं उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है‚इसके बावजूद अगर हम मोदी का महज इसलिए गुणगान करते रहें‚क्योंकि उन्होंने गुजरात में मुसलमानों को सबक सिखाया था‚ तो यह हमारी क्रूर‚ निरंकुश प्रवृत्ति का द्योतक है। जो देश व लोकतंत्र की सेहत के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है।
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