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मुअल्लमीन के साथ सरकार का खेल

mera desh
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    प्रदेश भर में इन दिनों उर्दू सहायक अध्यापकों की भर्ती हेतु काउंसिलिंग की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन सरकार की गलत नीति के चलते यह भर्ती प्रक्रिया मुअल्लिम प्रमाण पत्र धारकों के साथ न सिर्फ मजाक बन कर रह गयी है बल्कि मुस्लिमों का शुभचिंतक होने का दावा करने वाली सपा सरकार की मंशा पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रही है।
    सरकार की गलत नीति के चलते हजारों मुअल्लिम प्रमाण पत्र धारकों का उर्दू सहायक अध्यापक बनने का सपना चकनाचूर हो गया है। जामिया उर्दू अलीगढ़ के अदीब प्रमाणपत्र को हाईस्कूल के समकक्ष मानने से इंकार करने के बाद दूसरा झटका मुअल्लिम प्रमाण पत्र धारकों को यह लगा है कि उर्दू सहायक अध्यापकों की भर्ती हेतु चल रही काउंसिलिंग में जिम्मेदार अधिकारी मुअल्लिम प्रमाण पत्र हासिल करने के वर्ष और सत्र को मानने के लिए तैयार नहीं हैं और जिन अभ्यर्थियों का मुअल्लिम का अंकपत्र 11-08-1997 के बाद जारी हुआ है ‚उनका आवेदन पत्र अस्वीकृत कर दिया गया है।विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त सूचना के अनुसार जिला देवरिया में काउंसिलिंग में सम्मिलित ऐसे सभी मुअल्लिम प्रमाण पत्र धारकों को अपात्र मानते हुए नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है‚जिनका मुअल्लिम अंकपत्र 11-08-1997 के बाद जारी हुआ था।विदित हो कि ऐसे सभी मुअल्लिम प्रमाण धारकों का मुअल्लिम उत्तीर्ण करने का सत्र अंकपत्र पर 1996 दर्शाया गया है। लेकिन सम्बन्धित अधिकारी सत्र को मानने के लिए तैयार नहीं है।वास्तव में इसके लिए दोषी वह शासनादेश है जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा है कि 11-08-1997 से पूर्व मुअल्लिम उपाधि प्राप्त करने वाले ही चयन हेतु पात्र होंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है कि उपाधि प्राप्त करने के सत्र को परीक्षा उत्तीर्ण करने का वर्ष न मानकर अंकपत्र हासिल करने कि तिथि को परीक्षा उत्तीर्ण करने का समय माना गया है.इससे जाहिर होता है कि सरकार मुअल्लामीन को बतौर टीचर नियुक्त करने के प्रति गम्भीर नहीं है.
    उल्लेखनीय है कि जामिया उर्दू अलीगढ़ से मुअल्लिम का प्रमाण पत्र हासिल करने वाले वे अभ्यर्थी एक लम्बे समय से बतौर अध्यापक नियुक्ति की मांग लेकर संघर्षरत् हैं‚जिन्होंने उक्त प्रमाणपत्र 1997 से पूर्व प्राप्त किया था अर्थात् जामिया उर्दू अलीगढ़ के सत्र–1996 की परीक्षा में सम्मिलित हुए और उत्तीर्ण रहे थे।ऐसे अभ्यर्थियों द्वारा नियुक्ति की मांग का आधार यह था कि उस समय सरकार मुअल्लिम की डिग्री को बी.टी.सी.के समकक्ष स्वीकार करती थी।नियुक्ति से वंचित होने की दशा में ऐसे अभ्यर्थियों ने न्यायालय की शरण ली।जहां से उनके पक्ष में निर्णय हुआ और सरकार को उनकी नियुक्ति करने का आदेश हुआ।लेकिन तमाम सरकारें आई–गयीं पर मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों की नियुक्ति नहीं हुई।मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारक इस बीच संघर्ष करते रहे।विधानसभा चुनाव के अवसर पर समाजवादी पार्टी ने प्रदेश में अपनी सरकार बनने के बाद मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों को नियुक्ति करने का आश्वासन दिया और अब जबकि प्रदेश में सपा की सरकार है मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों की नियुक्ति प्रक्रिया भी आरंभ हो गयी है।पर इस भर्ती प्रक्रिया में जो नियम लागू किये गए और पात्रता की जो शर्ते रखी गयी हैं‚उससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों की नियुक्ति के प्रति गंभीर नहीं है।नियुक्ति हेतु जारी शासनादेश में जब मुअल्लिम प्रमाणपत्र हासिल करने का सत्र न लिखकर शासन ने एक तिथि (11-08-1997) तक मुअल्लिम प्रमाणपत्र प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को ही पात्र माना तभी यह बात साफ हो गयी कि सरकार मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों की नियुक्ति करने के मूड में नहीं है।परीक्षा वर्ष और सत्र के स्थान पर तिथि को आधार बनाने के पीछे सरकार की मंशा क्या है‚यह समझ से परे है।इस शासनादेश से हैरान एक मुअल्लिम धारक का कहना है कि तिथि तय करने से तो यही लग रहा है कि जामिया उर्दू अलीगढ़ प्रतिदिन के हिसाब से सत्र चलाता है। यही नहीं आरंभ में जारी आवेदन पत्र में जामिया अलीगढ़ के अदीब प्रमाणपत्र को हाईस्कूल के समकक्ष मानने के बाद सरकार ने यू टर्न लिया था और अदीब को हाईस्कूल के समकक्ष मानने से इंकार कर दिया था।ज्ञातव्य है कि सरकार के इस फरमान का मुअल्लिम संघ ने आरंभ से विरोध किया।पर सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी।

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      पहले सरकार ने मुअल्लिम प्रमाणपत्र प्राप्ति की तिथि तय करके सैकड़ों मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों को चयन प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखाया फिर अदीब को हाईस्कूल के समकक्ष न मानकर भी हजारों मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों को आशाओं पर पानी फेर दिया।अदीब को हाईस्कूल के समकक्ष न स्वीकार करने का सीधा असर मदरसों और उर्दू मीडियम से तालीम हासिल करनेवालों पर पड़ा।
      यहां एक बात और गौर करने की है कि आज की तिथि में शिक्षामित्रों को बिना टीईटी के भर्ती करने की बात करनेवाली सपा सरकार ने मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों के मामले में उनको टीईटी से मुक्त करने या करवाने की बात क्यों नहीं की। शिक्षामित्रों के मामले में नतमस्तक नजर आने वाली सरकार मुअल्लिमों के मामले में असहाय नजर आई या असहाय होने का ढ़ोग करती रही और मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों को टीईटी देने के लिए मजबूर कर दिया।टीईटी के कारण तमाम मुअल्लिम जो इस परीक्षा पद्धति से अंजान थे‚ , टीईटी में अनुत्तीर्ण होकर या आवेदन पत्र भरने में हुई गलती के चलते अध्यापक बनने की दौड़ से बाहर हो गए।स्पष्ट है कि सपा सरकार दोहरी नीति पर चल रही है।समाजवादी पार्टी मुस्लिम वोट बैंक को कांग्रेस की तरह लालीपाप पकड़ा कर अपना उल्लू सीधा करने की उम्मीद लगाए हुए है। लेकिन यह उसकी गलतफहमी भर है।क्योंकि सरकार की नीतियों से त्रस्त मुअल्लिम प्रमाणपत्र धारकों व मुस्लिम समुदाय में बेहद नाराजगी और असंतोष का माहौल बना हुआ है जो निश्चित रूप से आइंदा होनेवाले लोकसभा चुनाव पर सपा के प्रदर्शन पर गहरा प्रभाव डालनेवाला साबित होगा।

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