mera desh
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पेड़ जहरीले लगाते क्यों हो,
आग नफरत की जलाते क्यों हो.
खून की प्यास लगी है तुमको,
खुद को इंसान बताते क्यों हो.
मेरे आंसू नहीं भाते तुमको,
बारहां मुझको रुलाते क्यों हो.
तुम में बदलाव की हिम्मत जो नहीं,
फिर ये आवाज उठाते क्यों हो.
ये अंधेरा जो मिटाने की नहीं है ताकत,
तो जले दीप बुझाते क्यों हो.
अपना माना है अगर तुमने मुझे,
अपना गम मुझसे छुपाते क्यों हो.
बदगुमाँ खुद को समझ लेंगे खुदा,
हर जगह सर ये झुकाते क्यों हो.
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