Menu
blogid : 8696 postid : 190

मेरे वतन को मोहब्बत का बाग़ रहने दे.(ग़ज़ल)

mera desh
mera desh
  • 55 Posts
  • 161 Comments

अँधेरी रात में जलता चराग रहने दे,
मेरे वजूद पे माजी का दाग़ रहने दे.
मैं चाहता नहीं दुनिया मुझे भुलाये अभी,
मेरे कलाम में जज़्बों की आग रहने दे.
बहुत हुआ चलो रोको ये कीमतों का उरूज,
अभी ग़रीब की रोटी ओ साग रहने दे.
अगर है पालना तो अम्न का परिंदा रख,
जो डस ले अम्न को हरगिज़ वो नाग रहने दे.
खुदा के वास्ते नफरत की आंधियाँ न चला,
मेरे वतन को मोहब्बत का बाग़ रहने दे.
कोई भी रंग मोहब्बत का हो तो अच्छा है,
लहू से खेलना है गर तो फाग रहने दे.
यह नफरतों की ज़बाँ बाँट देगी गुलशन को,
वतन से प्यार है गर फिर यह राग रहने दे.
वो मीठा बोल के हमको फरेब देता है,
खरा कहे तो,मुंडेरों पे काग रहने दे.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply