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होली के रंग

mera desh
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    (1)

    बंदूक से निकली गोली न हो,
    तीखी,कड़वी बोली न हो.
    रिश्तों को जो जोड़ न पाए,
    ऐसी कोई होली न हो.                                                

    (2)

    रंगों की बौछार में,
    दिल से दिल मिल जाये भाई.
    होली का अंदाज़ हो ऐसा,
    प्रेम-पुष्प खिल जाये भाई.                                   

    (3)

    ख़त्म करो सारी तकरार,
    रहे न कोई भी दीवार.
    धुल जाएँ सब शिकवे-गिले,
    रंग की हो ऐसी बौछार.                                                

    (4)

    तन नहीं मन रंग लो रे,
    सबको अपने संग लो रे,
    रिश्तों को रंगीन बना दे,
    ऐसी होली खेलो रे.

    अंत में यह भी
    (5)
    होली के दिन,
    होली है,
    मैंने नारा बुलंद किया.
    लेकिन,
    उन्होंने नारा,
    बिलकुल नहीं पसंद किया.
    बोले,
    यह कौन सी नई बात है,
    जहाँ,
    खून की नदी बहती है
    और
    इन्सान की गर्दन,
    जानवर की तरह
    रोज़ कटती है,
    वहां,
    तो सालों-साल,
    होली रहती है.
    सच्ची होली,
    तो तब होगी,
    इन्सान जब इन्सान बन जायेगा,
    खुद को पहचान जायेगा.
    ईर्ष्या,घृणा,द्वेष के रंग से,
    निकलकर,
    प्रेम,भाईचारा,त्याग के,
    रंग में रंग जायेगा.

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