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भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने के लिए नेतृत्व चाहिए.

mera desh
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विषय:क्या इन चुनावों में भ्रष्टाचार सबसे प्रमुख मुद्दे के रूप में अपना असर छोड़ पायेगा?
भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार सदा से एक अहम् मुद्दा रहा है.देश की जो जनता भाषा,क्षेत्र,जाति,धर्म के नाम पर बँटी हुई है,वही जब बात भ्रष्टाचार की आती है तो एकजुट नज़र आती है.यह बात अलग है की हमारे जीवन में भ्रष्टाचार रच-बस गया है.फिर भी हमें यह बर्दाश्त नहीं है की देश में भ्रष्टाचार पले-बढे.इसलिए जब भी चुनाव के मौका पर भ्रष्टाचार का मुद्दा गरमाया है,चुनावी परिणाम पर उसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिला है.
यदि याद किया जाये तो ज्यादा पीछे जाने की ज़रूरत नहीं है.विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भ्रष्टाचार को ही मुद्दा बना कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक का सफ़र पूरा किया.बोफोर्स तोप की खरीद में घोटाले का शोर मचा कर राजा नहीं फकीर है,देश की तकदीर है,जैसे नारों के साथ साफ और स्वच्छ छवि के वी.पी.सिंह ने देश की जनता को एकजुट कर दिखाया.नतीजा यह हुआ की राजीव गाँधी के नेतृत्व के बावजूद कांग्रेस को एक बड़ी पराजय का मुंह देखना पड़ा और सत्ता गंवानी पड़ी.हालाँकि वी.पी.सिंह खुद प्रधानमंत्री होते हुए भी अपनी ही बात को अपने शासन काल में सही साबित नहीं कर पाए.फिर भी यह साबित हो गया कि देश यदि किसी मुद्दे पर एकजुट है तो वह है भ्रष्टाचार.
अन्ना हजारे के आन्दोलन ने एक बार फिर यही बात साबित की.भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना की जंग में उनके पीछे जो भीड़ उमड़ी,उसकी मिसाल कम ही मिलती है.जनता ने अन्ना के सुर में सुर मिलकर यह साबित कर दिया कि वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध हर जंग में खड़ी होने के लिए तैयार है.बस ज़रूरत है एक ऐसे लीडर की जिसकी खुद की छवि साफ-सुथरी हो.अन्ना हजारे में वही बात थी.जनता ने उनके आन्दोलन को अपनी ताक़त दी,समर्थन दिया.एक समय ऐसा भी आया कि केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आन्दोलन की तपिश महसूस की.अन्ना हजारे ने यह आन्दोलन ऐसे समय खड़ा किया था,जब सारा देश भ्रष्टाचार की आंधी की ज़द में था.लेकिन अन्ना हजारे का यह आन्दोलन किसी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं था और न ही अन्ना की टीम कोई राजनीतिक पार्टी थी.हालाँकि एक वक़्त अन्ना टीम ने राजनीतिक दलों के विरुद्ध मतदाताओं से उनके बायकाट की अपील करने का मन बनाया था,किन्तु बाद में उन्होंने अपना यह इरादा बदल दिया.यह अन्ना टीम के लिए तो सही फैसला था ही भारतीय राजनीति के लिए भी यही मुनासिब था.क्योंकि वी.पी.सिंह की तरह अन्ना कोई सरकार तो देने वाले नहीं थे.तो फिर जनता के पास विकल्प ही क्या था.यदि जनता भ्रष्टाचार के नाम पर नेताओं का बायकाट करती तो चुनती किसे,क्योंकि यहाँ हर दामन दागदार है और अन्ना खुद सरकार बनाने वाले नहीं थे.फिर भी यदि अन्ना ने अपील किया होता तो इसका असर चुनावी नतीजों पर पड़ सकता था.
अन्ना हजारे के चुनाव में दखल न देने के फैसले के बावजूद यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि जनता के समक्ष चुनाव में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं था.देश में भ्रष्टाचार है तो उसके खिलाफ रिएक्शन भी होना तय है.जनता ने भ्रष्ट दलों को सबक सिखाया है.ताज़ा चुनावी सर्वे यही बता रहे हैं.लेकिन भ्रष्टाचार बड़ा चुनावी मुद्दा तभी बनेगा जब उसे एक ईमानदार छवि का राजनीतिक नेतृत्व मिलेगा और तभी भ्रष्टाचार चुनावों में एक प्रमुख मुद्दे के रूप में अपना असर छोड़ पायेगा.

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