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निर्वाचन प्रणाली में सुधार की दरकार अभी है.

mera desh
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विषय: निर्वाचन प्रणाली में सुधार की दरकार, राइट टू रिकॉल (Right to Recall) व राइट टू रिजेक्ट (Right to Reject) की प्रासंगिकता

आज निर्वाचन प्रणाली में पहले की अपेक्षा काफी सुधार नज़र आता है.सबसे पहले तो चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के द्वारा अनावश्यक धनबल और बाहुबल के प्रदर्शन पर रोक लगाया,जिसके कारण चुनाव के समय होने वाले कानफोडू प्रचार और अराजकता से देश की आम जनता ने राहत की साँस लिया है.यह निर्वाचन प्रणाली में सुधार की ही बानगी है कि मतदान के समय होने वाले खून-खराबे पर पूरी तरह से काबू पा लिया गया है.फाल्स मतदान पर भी काफी हद तक अंकुश लग चुका है.निर्वाचन आयोग ने साफ-सुथरे ढंग से चुनाव करवाने में एक तरह से सफलता पा लिया है.इस सब के बावजूद निर्वाचन प्रणाली में सुधार की गुंजाईश अभी भी है.
सबसे ज़रूरी बात यह है कि निर्वाचन आयोग अभी तक दागी प्रत्याशियों को चुनाव में हिस्सा लेने से रोक नहीं पाया है.बड़े-बड़े अपराधी तत्व जेल से चुनाव लड़कर देश के सबसे बड़े सदन तक पहुँच जाते हैं.भ्रष्टाचार और घोटाला में आकंठ डूबे हुए लोग देश का कानून बनाने का अधिकार पा रहे हैं.जाति,धर्म,भाषा,क्षेत्र के नाम पर देश समाज में ज़हर घोलने वालों के चुनाव लड़ने पर कोई रोक नहीं है.स्पष्ट रूप से अभी भी सुधार की दरकार है.ऐसी व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है कि असामाजिक और दागी चेहरे चुनाव में शामिल न हो सकें.प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के 403 में से 121 सीटों पर दागी उम्मीदवार थे,जिन्हें मौजूदा निर्वाचन प्रणाली चुनाव लड़ने से नहीं रोक पाई.ऐसे ही जाति,धर्म आधारित राजनीति करने वालों को भी रोकने की कोई फुल प्रूफ व्यवस्था नहीं है.हम सब जानते हैं कि अमुक नेता या अमुक राजनीतिक दल जाति,धर्म की राजनीति करता है,पर उसे चुनाव में भाग लेने से रोकना संभव नहीं.इस विवशता को ख़त्म करने की ज़रूरत है और यह बिना निर्वाचन प्रणाली में उचित सुधार के संभव नहीं है.
इस चुनाव में मतदाताओं ने राइट टू रिजेक्ट का प्रयोग भी किया.यह सुनने-करने में अलग और अनोखा लगता है,लेकिन यह समस्या का हल नहीं है.समस्या का हल यह होना चाहिए कि ऐसे प्रत्याशी चुनाव प्रक्रिया में भाग ही न ले सकें जिन्हें रिजेक्ट करना पड़े,व्यवस्था ऐसी बनाने की ज़रूरत है कि सिर्फ अच्छे और ईमानदार प्रत्याशी ही चुनाव में उम्मीदवार बनें और हमें उनमें से ही अपना नुमाइन्दा चुनने का अवसर मिले.संतकबीर नगर के चकिया के मतदाताओं ने राइट टू रिजेक्ट से आगे बढ़ कर पूरे मतदान प्रक्रिया का ही बहिष्कार कर दिया .वहां के किसी भी मतदाता ने मतदान ही नहीं किया.अब प्रश्न यह है कि जिन प्रत्याशियों को चकिया के मतदाताओं ने अपना मत देने से इंकार कर दिया,क्या ऐसे प्रत्याशियों को दूसरे इलाकों से प्राप्त वोट के आधार पर उनका प्रतिनिधि माना जायेगा.यदि मान ही लिया जाये तो क्या उस क्षेत्र से चुना हुआ प्रत्याशी उनके के साथ इन्साफ कर सकेगा.अतः निश्चित रूप से ऐसे कानून की ज़रूरत कि जनता को अनचाहे उम्मीदवारों में से अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए विवश न होना पड़े.
जहाँ तक राइट टू रीकाल का सवाल है,तो यह अधिकार अराजक तत्वों और विपक्षी दलों के लिए हथियार साबित हो सकता है.आम जनता इसका प्रयोग करे या न करे,पर परदे के पीछे से विपक्षी इसका इस्तेमाल करके किसी भी चुने हुए जन प्रतिनिधि की नाक में दम कर देंगें,जो लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए बिलकुल ही अच्छा नहीं होगा.कुल मिलकर निर्वाचन प्रणाली को ऐसा बनाने की आवश्यकता है कि जनता के समक्ष राइट टू रिजेक्टराइट टू रीकाल के प्रयोग की नौबत ही न आये.

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