Menu
blogid : 8696 postid : 94

प्यार क्या चाहता है.

mera desh
mera desh
  • 55 Posts
  • 161 Comments

pyar kya chahta hai

प्यार
इंसानी फितरत है की वह प्यार पाना चाहता है,प्यार देना चाहता है.आज प्यार की भावना से कोई इंकार नहीं कर सकता.बिना प्यार के इस सृष्टि की कल्पना ही नहीं की जा सकती.सच तो यह है कि इस सृष्टि का स्थायित्व प्यार पर निर्भर करता है.जिस दिन दुनिया से प्यार ख़त्म हो जायेगा,दुनिया भी ख़त्म हो जाएगी.
दुनिया का हर दिल किसी न किसी के लिए धड़कता है,किसी न किसी से प्यार करता है.कुछ लोग इसका इज़हार करते हैं,तो कुछ इज़हार नहीं कर पाते.कुछ लोग खुशनसीब होते हैं अपना प्यार इसी जनम में पा जाते हैं,कुछ अगले जनम में मिलने की कामना करते ही रह जाते हैं.प्यार की राह में ज़माने भर की दुश्वारियां होती हैं.धर्म,जाति,गोत्र,अमीर-गरीब जैसी तमाम दीवारें प्यार करने वालों के सामने खड़ी रहती हैं.बहरहाल प्यार का अंजाम चाहे जो हो इन्सान प्यार करता है.
प्यार का अर्थ
आज के दौर में लोग प्यार को समझने में भूल कर रहे हैं.विशेष रूप से किशोर व युवा पीढ़ी के लिए प्यार का अर्थ काफी बदला है.आज स्त्री-पुरुष संबंधों को ही प्यार समझ लिया गया है.हालाँकि यह सच नहीं है.प्यार का ताल्लुक जिस्म से नहीं आत्मा से है.प्यार छुआ नहीं जा सकता,सिर्फ महसूस किया जा सकता.आज आये दिन वहशी प्रेमियों की ख़बरें आती हैं,जो एकतरफा प्रेम को अपने साथी पर जबरदस्ती थोपने की कोशिश करते हैं और अपने इरादा में नाकाम होने पर अपनी गर्लफ्रेंड के प्रति क्रूरता पर उतर आते हैं.यह पागलपन तेजाब फेंकने से लेकर जान लेने तक के रूप में देखने को मिलता है.ऐसे लोग प्यार को कलंकित करने वाले हैं.यह प्यार की भावना,उसके मर्म से अनजान अपने स्वार्थ की दुनिया में जीते हैं.यह लोग जानते ही नहीं की प्यार है क्या?
प्यार हो जाता है
प्यार के बारे में कहा जाता है कि प्यार किया नहीं जाता,हो जाता है.प्यार के बारे में यही सच है.प्यार जोर-ज़बरदस्ती से नहीं होता.अपने आप हो जाता है और जब हो जाता है तो इसका नशा उतरता नहीं.इस सच्चाई को स्वीकारने की ज़रूरत है.डरा-धमकाकर या पैसे से प्यार हासिल नहीं किया जा सकता.इन तरीकों से यदि कुछ हासिल होता है तो रुसवाई,बदनामी और कई बार जेल.यदि किसी ने आपके प्रेम को समझा नहीं तो इसका अर्थ कदापि यह नहीं की आप उसे प्यार करने पर मजबूर करें.यह ठीक है कि वह आप से प्यार नहीं करता,पर आप तो उससे प्यार करते हैं.फिर उसे मुसीबत में कैसे डाल सकते हैं.यदि आप ऐसा करते हैं तो यही माना जायेगा आपने उससे प्यार नहीं,कुछ और किया था.
प्यार क्या चाहता है!
प्यार है क्या और चाहता क्या है,इसे समझने कि ज़रूरत है.यदि माँ के प्यार को हम गहराई से महसूस करें तो आसानी से समझ सकते हैं कि प्यार है क्या और हमसे चाहता क्या है.माँ अपने बच्चे के लिए क्या करती है!पहले तो उसे नौ माह अपने पेट में रखती है.दिन-रात उसकी सुरक्षा के प्रति सचेत रहती है और अपने खून से उसे सींचती है.फिर असहनीय दर्द सह कर बच्चे को जन्म देती है.माँ की भूमिका का अंत यहीं नहीं होता.दरअसल इसके बाद ही उसकी ममता का,उसके प्यार का असल रूप दिखाई देता है.बिना कहे वह बच्चे की ज़रूरतें समझ लेती है.दिन-रात उसकी सेवा करती है.खुद तकलीफ उठा लेती है,उसे सुख पहुंचाती है.वह न दिन में चैन की साँस लेती है और न रात में आराम करती है.सच तो यह है की वह पल-पल उसी के लिए जीती है और उसी के लिए मरती है.उसकी ज़िन्दगी का मकसद सिर्फ बच्चे को सुखी रखना,उसे मुस्कराते हुए देखना होता है.उसकी खिलखिलाहट में ही उसके दिल का चैन-सुकून होता है.बच्चे के चेहरे की चमक के लिए माँ हर त्याग करती है.लेकिन उसे कष्ट नहीं होने देती.दुर्भाग्यवश यदि उसके बच्चे को कष्ट पहुँचता है तो वह तड़प उठती है.प्यार यही है,प्यार हम से त्याग चाहता है ,सुरक्षा चाहता है.प्यार हमसे मुसीबत की धूप में छाया चाहता है,परीक्षा के लम्हों में सपोर्ट चाहता है.
विचारणीय है क्या हम प्यार में ऐसा ही करते हैं.अपने साथी से कुछ पाने की अपेक्षा उसे देने में विश्वास करते है.क्या हम उसे उसकी कमियों के साथ स्वीकारते हैं या उसे अपनी अपेक्षा के अनुसार ढलने पर मजबूर करते हैं.ऐसा है तो प्यार है या नहीं इस पर विचार करने की ज़रूरत है.वास्तव में प्यार अपने साथी को उसकी खामियों के साथ स्वीकारने का नाम है.यदि साथी में कोई खामी है तो प्यार उसपर पर्दा बन जाता है.उसे चर्चा का विषय नहीं बनाता.
प्यार हुकूमत नहीं.
हम जिससे प्यार करते हैं,उससे यह अपेक्षा न रखें कि वह हमारी ऊँगली पर नाचेगा.वह भी एक स्वतंत्र सोच रखता है,व्यक्तित्व रखता है.उसकी अपनी भावनाएं हैं.वह कुछ आप से अलग होगा.आपसे कुछ अलग सोचेगा.यदि आप यह सोचने लगे कि वह आपके इशारे पर नहीं नाच रहा है,इसका मतलब वह आपसे प्यार नहीं करता,तो यह गलत है.प्यार साथी की भावनाओं का आदर करने को वरीयता देता है.यदि रिश्तों में इसका अभाव है तो समझिये की आप उससे प्यार नहीं करते,उससे पर राज करना चाहते हैं.यदि ऐसा है,तो फिर प्यार कहाँ है.
अंत में
यहाँ जो भी बातें कही गयी हैं,एक पक्ष के लिए नहीं हैं.यह बातें दोनों में होनी चाहिएं.अगर दोनों ही पक्ष एक-दूसरे को अपनी ज़रूरतों,ख्वाहिशों,भावनाओं पर वरीयता देते हैं तो प्यार की सफलता में कोई शक नहीं.प्यार में बस देने की ख्वाहिश होनी चाहिए पाने की नहीं,प्यार की सफलता इसी भावना में निहित है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply