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हम बसपा को वोट क्यों दें ?

mera desh
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विषय:उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड के संदर्भ में राजनीति व चुनाव संबंधी कोई भी मुद्दा.

चुनाव के दौरान यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि हम किसी पार्टी को वोट क्यों दें?यह बड़ा सवाल अपने कीमती मत का प्रयोग करते समय हमारे सामने अक्सर खड़ा होता है.उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल से बसपा की सरकार रही और पूर्ण बहुमत के साथ.ज़ाहिर है कि उसने इस दौरान जो भी काम जनता के हित में किया होगा अब उसका नतीजा प्राप्त करने का वक़्त है.हमारे यहाँ किसी दल को वोट प्रायः जाति,धर्म,क्षेत्र आदि के आधार पर मिलता है,किन्तु सत्तासीन दल को जनता वोट सिर्फ उसके किये गए कार्यों के आधार पर देती है.बसपा ने पिछले 5 वर्षों में जो कुछ किया है,वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया.सरकार का पूरा ध्यान पार्क और मूर्तियाँ बनवाने में रहा.जो न तो देश हित में था न जनहित में.यह सदमे की बात है जहाँ लोग दो वक़्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं.वहां सरकार अरबों रुपया हाथी की मूर्ति बनवाने में खर्च कर रही है.सोचिये जिन मूर्तियों को ढकवाने में चुनाव आयोग ने एक करोड़ रुपया खर्च किया उन्हें बनवाने में कितना खर्च हुआ होगा.उन रुपयों से जाने कितने स्कूल खुल सकते थे,कितने लोगों के लिए दो वक़्त की रोटी का इंतजाम किया जा सकता था.यही पैसा विकास के कार्यों में खर्च होता तो सार्थक साबित होता.मूर्तियाँ बनवाकर इतिहास तो लिखा जा सकता है,किसी के होंठों पर मुस्कान नहीं लाया जा सकता और न ही वोट हासिल किया जा सकता है.बनी हुई मूर्तियों की सुरक्षा,देखभाल पर सालाना करोड़ों खर्च होना तय है,इसका बोझ जनता पर ही आएगा.यानि बदहाल जनता की और बदहाली भी तय है.
बसपा की उपलब्धि मूर्तियों को छोड़ दिया जाए तो दूसरी उपलब्धि भ्रष्टाचार का ध्यान आता है.सरकार की हर योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी.राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के खूनी भ्रष्टाचार ने तो रिकार्ड ही तोड़ दिया.सरकार की सरपरस्ती में सरकार और पार्टी के लोग ही इस योजना का धन मिल-बांटकर खा गए.आश्चर्य है कि सरकार अंत तक इस मामले से अनजान बनी रही.
बसपा सरकार में भ्रष्टाचार का जो खेल हुआ,वह बहन मायावती को तबतक नहीं दिखा जबतक लोकायुक्त या किसी और ने उन्हें नहीं दिखाया.क्या ऐसा हो सकता है कि प्रदेश के मुखिया के नाक के नीचे उसके अपने ही मंत्री,विधायक लूट-पाट में लगे रहे और उसे खबर न हो.इस बात पर कोई विश्वास कर सकता है ?जब सरकार की नाक के नीचे ही यह सब हुआ तो फिर दूसरी छोटी-बड़ी योजनाओं का क्या हाल होगा अंदाजा लगाया जा सकता है.जनता को सरकारी योजनाओं का लाभ बिना कुछ घूस दिया नहीं मिला.जिसने हवा के खिलाफ बहने की जुर्रत की उसे पात्र होने के बाद भी योजना का लाभ नहीं मिला.सवाल है की ऐसी योजनाओं का लाभ क्या जो पात्रों को ही फायदा न पहुंचाए.
हाल ही में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टी.इ.टी.) में करोड़ों के घोटाले का पर्दाफाश हुआ है.माया सरकार की नीयत इस परीक्षा को लेकर शुरू से ही साफ़ नहीं थी.पहले तो सरकार ने इस परीक्षा के लिए 500-500 रूपये का फार्म,प्राइमरी और जूनियर के लिए अलग-अलग भरवाकर न सिर्फ बेरोजगारों को परेशान किया बल्कि उनपर अनावश्यक आर्थिक बोझ भी डाल दिया.जबकि सी.टी .इ.टी. में 500 रूपये के एक फार्म पर ही दोनों परीक्षाएं ली गयीं.बिहार सरकार ने तो बेरोजगारों की समस्या को महसूस करते हुए मात्र 100 रूपये में एक फार्म पर प्राइमरी और जूनियर दोनों की परीक्षा ली.फार्म भरवाने से बेरोजगारों का जो शोषण यू.पी.सरकार द्वारा शुरू हुआ,वह अभी तक जारी है.उस परीक्षा के आधार पर होने वाली शिक्षक भर्ती में मेरिट आधारित चयन के नियमों का लाभ उठाते हुए सम्बंथित विभागों के जिम्मेदार अधिकारियों ने नंबर बढ़वाने के लिए करोड़ों का घोटाला किया गया.सरकार इससे भी अनजान रही.
चुनाव के ठीक पहले लोकायुक्त की अनुशंसा पर लगभग एक दर्जन मंत्री अपने पद से हटाये गए.क्या यह मान लिया जाये कि अब बसपा सरकार में कोई भ्रष्ट नहीं है.यह माना जा सकता था,यदि ऐसे मंत्रियों,विधायकों की छुट्टी खुद मायावती अपने स्तर से करतीं.लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो बसपा पर भरोसा करने का कोई मतलब नहीं.आज की तारीख में बसपा की मुखिया तो अरबों की संपत्ति की मालिक हैं ही,उनके पार्टी के तमाम नेता भी पांच साल में मालामाल हो गए हैं.
“सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय” का नारा देने वाली सरकार ने पिछले पांच वर्षों में जो सुशासन दिया उसने जनता की आँख खोल दी है,यदि अभी भी किसी की आँख नहीं खुली तो निश्चित रूप से उसकी आँख पर ऐसी पट्टी बंधी है,जिसे कोई नहीं खोल सकता.

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