mera desh
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शेर मरता है मगर डरता नहीं,
गीदड़ों की नौकरी करता नहीं.
लिख नहीं सकता नई तारीख वो,
जो वसूलों पर कभी चलता नहीं.
वह हकीकत में भला बदलेगा क्या,
ख्वाब जो आँखों में है पलता नहीं .
उस गली में कौन जायेगा भला,
दीप रस्ते में जहाँ जलता नहीं.
गर यकीं होता खुदा की ज़ात पर,
आदमी को आदमी छलता नहीं.
जो समझ बैठा है दौलत को खुदा,
पेट ऐसे शख्स का भरता नहीं.
प्यार की खुशबू वहां फैलेगी क्या,
फूल आँगन में जहाँ खिलता नहीं.
दिल लगाने से है डर लगने लगा,
चाहता है दिल जिसे,मिलता नहीं.
जो मिटा इंसानियत के वास्ते,
शख्स वो हरगिज़ कभी मरता नहीं.
“राज” टुकड़े कर दिया जाता है वो,
मुद्दतों तक पेड़ जो फलता नहीं.
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